श्रीविघ्नेश्वरसंधि श्रीजगन्नाथदास विरचित श्रीविघ्नेश्वरसंधि हरिकथामृतसार गुरुगळ करुणदिंदापनितु पेळुवे परमभगवद्भक्तरिदनादरदि केळुवुदु ॥१॥ श्रीशनंघ्रिसरोजभृंग म- हेशसंभव मन्मनदोळु प्र- काशिसनुदिन प्रार्थिसुवे प्रेमातिशयदिंद नी सलहु सज्जनर वेद- व्यासकरुणापात्र महदा- काशपति करुणाळु कैपिडिदेम्मनुद्धरिसु ॥२॥ एकदंत इभेंद्रमुख चा- मीकरकृतभूषणांग कृ- पाकटाक्षदि नोडु विज्ञापिसुवे इनितेंदु नोकनीयन तुतिसुतिप्प वि- वेकिगळ सहवाससुखगळ नी करुणिसुवदेमगे संतत परमकरुणदलि॥३॥ विघ्नराजने दुर्विषयदोळु मग्नवागिह मनव महदो- षघ्ननंघ्रिसरोजयुगळदि भक्तिपूर्वकदि लग्नवागलि नित्य नरकभ- याग्निगळिगानंजे गुरुवर भग्नगैसेन्नवगुणगळनु प्रतिदिवसदल्लि॥४॥ धनप विष्वक्सेन वैद्या- श्विनिगळिगे सरियेनिप षण्मुख- ननुज शेषशतस्थदेवोत्तम वियद्गंगा- विनुत विश्वोपासकने स- न्मनदि विज्ञापिसुवे लकुमि वनितेयरसन भक्तिज्ञानव कोट्टु सलहुवदु॥५॥ चारुदेष्णाह्वयनेनिसि अव- तार माडिदे रुग्मिणीयलि गौरियरसन वरदि उद्धटराद राक्षसर शौरियाज्ञदि संहरिसि भू- भारविळुहिद करुणि त्वत्पा- दारविंदके नमिपे करुणिपुदेमगे सन्मतिय॥६॥ शूर्पकर्णद्वय विजितकं- दर्पशर उदितार्कसन्निभ सर्पवरकटिसूत्र वैकृतगात्र सुचरित्र स्वर्पितांकुशपाशकर खळ- दर्पभंजन कर्मसाक्षिग तर्पकनु नीनागि तृप्तिय पडिसु सज्जनर॥७॥ खेश परमसुभक्तिपूर्वक व्यासकृतग्रंथगळनरितु प्र- यासविल्लदे बरेदु विस्तरिसिदेयो लोकदोळु पाशपाणिये प्रार्थिसुवे उप- देशिसेनगदरर्थगळ करु- णासमुद्र कृपाकटाक्षदि नोडु प्रतिदिनदि॥८॥ श्रीशनतिनिर्मलसुनाभी- देशवस्थित रक्तश्रीगं- धासुशोभितगात्र लोकपवित्र सुरमित्र मूषकासुरवहन प्राणा- वेशयुत प्रख्यात प्रभु पू- रैसु भक्तरु बेडिदिष्टार्थगळ प्रतिदिनदि॥९॥ शंकरात्मज दैत्यरिगतिभ- यंकर गतिगळीयलोसुग संकटचतुर्थिगनेनिसि अहितार्थगळ कोट्टु मंकुगळ मोहिसुवे चक्रद- रांकितने दिनदिनदि त्वत्पद- पंकजगळिगे बिन्नयिसुवेनु पालिपुदु एम्म ॥१०॥ सिद्धविद्याधर गणसमा- राध्यचरणसरोज सर्वसु- सिद्धिदायक शीघ्रदिं पालिपुदु बिन्नयिपे बुद्धिविद्याज्ञानबल परि- शुद्धभक्तिविरक्ति निरुतन- वद्यन स्मृतिलीलेगळ सुस्तवन वदनदलि॥११॥ रक्तवासद्वय विभूषण उक्ति लालिसु परमभगव- द्भक्तवर भव्यात्म भागवतादि शास्त्रदलि सक्तवागलि मनवु विषयवि- रक्ति पालिसु विद्वदाद्य वि- मुक्तनेंदेनिसेन्न भवभयदिंदलनुदिनदि॥१२॥ शुक्रशिष्यर संहरिपुदके शक्र निन्ननु पूजिसिदनु उ- रुक्रम श्रीरामचंद्रनु सेतुमुखदल्लि चक्रवर्तीप धर्मराजनु चक्रपाणिय नुडिगे भजिसिद वक्रतुंडने निन्नोळेंतुटो ईशनुग्रहवु ॥१३॥ कौरवेंद्रनु निन्न भजिसद कारणदि निजकुलसहित सं- हारवैदिद गुरुवर वृकोदरन गदेयिंद तारकांतकननुज एन्न श- रीरदोळु नी निंतु धर्म- प्रेरकनु नीनागि संतैसेन्न करुणदलि॥१४॥ एकविंशतिमोदकप्रिय मूकरनु वाग्मिगळ माळ्पे कृ- पाकरेश कृतज्ञ कामद कायो कैपिडिदु लेखकाग्रणि मन्मनद दु- र्व्याकुलव परिहरिसु दयदि पि- नाकिभार्यातनुज मृद्भव प्रार्थिसुवे निन्न॥१५॥ नित्यमंगळचरित जगदु- त्पत्तिस्थितिलयनियमन ज्ञा- नत्रयप्रद बंधमोचक सुमनसासुरर चित्तवृत्तिगळंते नडेव प्र- मत्तनल्ल सुहृज्जनाप्तन नित्यदलि नेने नेनेदु सुखिसुव भाग्य करुणिपुदु॥१६॥ पंचभेदज्ञानवरुपु वि- रिंचिजनकन तोरु मनदलि वांछितप्रद ओलुमेयिंदलि दासनेंदरिदु पंचवक्त्रन तनय भवदोळु वंचिसदे संतैसु विषयदि संचरिसदंददलि माडु मनादिकरणगळ॥१७॥ एनु बेडुवदिल्ल निन्न कु- योनिगळु बरलंजे लकमि- प्राणपति तत्त्वेशरिंदोडगूडि गुणकार्य ताने माडुवनेंब ई सु- ज्ञानवने करुणिसुवदेमगे म- हानुभाव मुहुर्मुहुः प्रार्थिसुवे इनितेंदु ॥१८॥ नमो नमो गुरुवर्य विबुधो- त्तम विवर्जितनिद्र कल्प- द्रुमनेनिपे भजकरिगे बहुगुणभरित शुभचरित उमेय नंदन परिहरिसहं- ममते बुध्द्यादिंद्रियगळा- क्रमिसि दणिसुतलिहवु भवदोळगावकालदलि॥१९॥ जयजयतु विघ्नेश ताप- त्रयविनाशन विश्वमंगळ जय जयतु विद्याप्रदायक वीतभयशोक जय जयतु चार्वंग करुणा- नयनदिंदलि नोडि जनुमा- मय मृतिगळनु परिहरिसु भक्तरिगे भवदोळगे॥२०॥ कडुकरुणि नीनेंदरिदु हे- रोडल नमिसुवे निन्नडिगे बें- बिडदे पालिसु परमकरुणासिंधु एंदेंदु नडुनडुवे बरुतिप्प विघ्नव तडेदु भगवन्नाम कीर्तने नुडिदु नुडिसेन्निंद प्रतिदिवसदलि मरेयदले ॥२१॥ एकविंशति पदगळेनिसुव कोकनद नवमालिकेय मै- नाकितनयांतर्गतश्रीप्राणपतियेनिप श्रीकर जगन्नाथविठ्ठल स्वीकरिसि स्वर्गापवर्गदि ता कोडुव सौख्यगळ भक्तरिगावकालदलि॥२२॥