फलविदु बाळ्दुदके फलविदु बाळ्दुदके फलविदु बाळ्दुदके सिरि निलयन गुणगळ तिळिदु भजिसुवदे ॥प॥ स्वोचित कर्मगळाचरिसुत बलु नीचरल्लि पोगि याचिसदे । खेचरवाह चराचर बंधक मोचकनहुदेंद्योचिसुतिप्पोदे ॥१॥ निच्चसुभकुतियोळच्युतनंघ्रिग ळर्चिसि मेच्चिसुतेच्चरदि । तुच्चविषयगळनिच्चिसदले य- दृच्छालाभदिं प्रोच्चनागुवदे ॥२॥ मनोवाक्कायदोळनुभविसुव दिनदिनद विषयसाधनगळनु अनिलांतर्गत वनरुहदळलो- चनगर्पिसि दासनु नानेंबोदे ॥३॥ वासवमुखविबुधासुरनिचयके वासुदेवने शुभाशुभद ई समस्तजगकीश केशवा- नीश जीवरेंबी सुज्ञानवे ॥४॥ पंचभेदयुत प्रपंच सत्य वि- रिंचिमुखरु बलिवंचकगे संचल प्रतिमे अचंचल प्रकृतियु संचिंतिसि मुदलांछनागुवुदे ॥५॥ पंचक्रतुगळलि पंचाग्निगळलि पंचपंचरूपव तिळिदु पंचसुसंस्काररांचितनागि द्विपंचकरणदलि प्रपंचकनरिवुदे ॥६॥ पात्रर संगड यात्रेय चरिसि वि- धातृपितन गुणस्तोत्रगळ श्रोत्रदि सविदु विचित्रानंददि गात्रव मरेदु परत्रव पडेवुदे ॥७॥ हृदयदि रूपवु वदनदि नामवु उदरदि नैवेद्यवु शिरदि पदजल निर्माल्यवने धरिसि को- विदर सदन हेग्गदव कायुवदे ॥८॥ हंसमोदलु हदिनेंटु रूपगळ संस्थानव तिळिदनुदिनदि संसेविसुव महापुरुषर पद- पांसुव धरिसि असंशयनप्पुदे ॥९॥ वरगायत्रीनामक हरिगी- रेरडंघ्रिगळ विवरव तिळिदु तरुवायदि षड्विधरूपव सा- दरदलि ध्यानिसि निरुत जपिसुवदे ॥१०॥ बिगिद कंठदिं दृग्बाष्पगळिं नगेमोगदिं रोमगळोगेदु मिगे संतोषदि नेगेदाडुव ना- ल्मोगनय्यन गुण पोगळि हिग्गुवदे ॥११॥ गृहकर्मव ब्यासरदले परमो- त्साहदि माडुत मूजगद महितन सेवेयिदेनुतलि मोददि अहरहर्मनदि समर्पिसुतिप्पुदे ।।१२॥ क्लेशानंदगळीशाधीन स- मासम ब्रह्मसदाशिवरु ईशितव्यरु परेशनल्लदे श्वासबिडुव शक्ति लेशविल्लेंबोदे ॥१३॥ आ परमात्मगे रूपद्वयवु परापरतत्त्वगळिदरोळगे स्त्री-पुंभेददि ई पद्मांडव व्यापिसि इहनेंदीपरि तिळिवुदे ॥१४॥ एकोत्तर पंचाशद्वर्णग- ळेकात्मन नामंगळिवु मा कमलासन मोदलादमररु साकल्यदि इवनरियरेंतेंबुदे ॥१५॥ ओंदु रूपदोळगनंतरूपगळु पोंदिप्पवु गुणगणसहित हिंदे मुंदे एदेंदिगू श्री गोविंदगे सरिमिगिलिल्लेंतेंबुदे ॥१६॥ मेदिनिपरमाण्वंबुकणंगळ- नैदबहुदु परिगणतेयनु माधवनानंदादिगुणंगळ- नादिकालदिंदगणितवेंबुदे ॥१७॥ मूजगदोळगिह भूजल खेचर ई जीवरोळु महौजसन सोजिग बहुविध नैजविभूतिय पूजिसुतनुदिन राजिसुतिप्पुदे ॥१८॥ हरिकथे परमादरदलि केळुत मरेदु तनुव सुख सुरियुतलि उरुगायनसंदरुशन हारै- सिरळु हगलु जरिजरिदु बळलुवुदे ॥१९॥ विषयेंद्रियगळलि तदभिमानि सुम- नसरलि निंदु नियामिसुव श्वसनांतर्गत वासुदेव ता विषयगळनु भोगिसुवनेंदरिवुदे ॥२०॥ गुणकालाह्वय अगमार्णव कुं- भिणिपरमाण्वंबुधिगळलि वनगिरिनदिमोदलाददरोळ गिं- धनगतपावकनंतिहनेंबुदे ॥२१॥ अनलंगारदोळिप्पोपादिलि अनिरुद्धनु चेतनरोळगे क्षण बिट्टगलदे एको नारा- यण श्रुतिप्रतिपाद्यनु इहनेंबुदे ॥२२॥ पक्ष्मगळक्षगळगलदलिप्पंत- क्षरपुरुषनपेक्षेयलि कुक्षियोळब्जजत्र्यक्षाद्यमरर ईक्षिसि करुणदि रक्षिपनेंबुदे ॥२३॥ कारणकार्यांतर्गत अंशव- तारावेशाहित सहज प्रेरक प्रेर्याह्वय सर्वत्र विकारविल्लदले तोरुवनेंबुदे ॥२४॥ प्रतिदिवस श्रुतिस्मृतिगळिंद सं- स्तुतिसुत लक्ष्मीपतिगुणव कृतिपति सृष्टिस्थितिलयकारण इतर देवतेगळल्लिल्लेंबुदे ॥२५॥ पवनमतानुगरव नानेंतें- दवनियोळगे सत्कविजनर भवनगळलि प्रतिदिवसदि सुकथा- श्रवण माडुतलि प्रवरनागुवदे ॥२६॥ पन्नगाचलसन्निवास पा- वन्नचरित सद्गुणभरित जन्यजनकलावण्यगुणनिधि ज- गन्नाथविठलानन्यपनेंबुदे ॥२७॥