हयग्रीवसंपदास्तोत्रम् ॥ अथ हयग्रीवसंपदास्तोत्रम् ॥ हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति वादिनम् । नरं मुंचंति पापानि दरिद्रमिव योषितः ॥१॥ हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति यो वदेत् । तस्य निःसरते वाणी जह्नुकन्याप्रवाहवत् ॥२॥ हयग्रीव हयग्रीव हयग्रीवेति यो ध्वनिः । विशोभते च वैकुंठकवाटोद्घाटनध्वनिः ॥३॥ श्लोकत्रयमिदं पुण्यं हयग्रीवपदांकितम् । वादिराजयतिप्रोक्तं पठतां संपदां पदम् ॥४॥ ॥ इति वादिराजतीर्थविरचितं हयग्रीवसंपदास्तोत्रम् ॥