॥ अथ द्वादशस्तोत्रे नवमोऽध्यायः ॥


अतिमत तमोगिरिसमितिविभेदन
पितामहभूतिद गुणगणनिलय ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१॥


विधिभवमुखसुरसततसुवंदित
रमामनोवल्लभ भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥२॥


अगणितगुणगणमयशरीर हे
विगतगुणेतर भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥३॥


अपरिमितसुखनिधिविमलसुदेह हे
विगतसुखेतर भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥४॥


प्रचलितलयजलविहरण शाश्वत
सुखमय मीन हे भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥५॥


सुरदितिजसुबलविलुलितमंदर-
धर परकूर्म हे भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥६॥


सगिरिवरधरातलवह सुसूकर
परम विबोध हे भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥७॥


अतिबलदितिसुतहृदयविभेदन
जय नृहरेऽमल भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥८॥


बलिमुखदितिसुतविजयविनाशन
जगदवनाजित भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥९॥


अविजितकुनृपतिसमितिविखंडन
रमावर वीरप भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१०॥


खरतरनिशिचरदहन परामृत
रघुवर मानद भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥११॥


सुललिततनुदर वरद महाबल
यदुवर पार्थप भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१२॥


दितिसुतमोहन विमलविबोधन
परगुण बुद्ध हे भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१३॥


कलिमलहुतवहसुभगमहोत्सव
शरणदकल्कीश हे भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१४॥


अखिलजनिविलय परसुखकारण
पर पुरुषोत्तम भव मम शरणम् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१५॥


इति तव नुतिवरसततरतेर्भव
सुशरणमुरुसुखतीर्थमुनेर्भगवन् ।
शुभतमकथाशय परम सदोदित
जगदेककारण राम रमारमण ॥१६॥


॥ इति द्वादशस्तोत्रे नवमोऽध्यायः ॥