अथ दामोदरस्तोत्रं
मत्स्याकृतिधर जय देवेश वेदविबोधक कूर्मस्वरूप ।
मंदरगिरिधर सूकररूप भूमिविधारक जय देवेश ॥१॥
कांचनलोचन नरहरिरूप दुष्टहिरण्यकभंजन जय भो ।
जय जय वामन बलिविध्वंसिन् दुष्टकुलांतक भार्गवरूप ॥२॥
जय विश्रवसःसुतविध्वंसिन् जय कंसारे यदुकुलतिलक ।
जय वृंदावनचर देवेश देवकिनंदन नंदकुमार ॥३॥
जय गोवर्धनधर वत्सारे धेनुकभंजन जय कंसारे ।
रुक्मिणिनायक जय गोविंद सत्यावल्लभ पांडवबंधो ॥४॥
खगवरवाहन जय पीठारे जय मुरभंजन पार्थसखे त्वम् ।
भौमविनाशक दुर्जनहारिन् सज्जनपालक जय देवेश ॥५॥
शुभगुणपूरित जय विश्वेश जय पुरुषोत्तम नित्यविबोध ।
भूमिभरांतककारणरूप जय खरभंजन देववरेण्य ॥६॥
विधिभवमुखसुरसततसुवंदितसच्चरणांबुज कंजसुनेत्र ।
सकलसुरासुरनिग्रहकारिन् पूतनिमारण जय देवेश ॥७॥
यद्भ्रूविभ्रममात्रात्तदिदमाकमलासनशंभुविपाद्यम् ।
सृष्टिस्थितिलयमृच्छति सर्वं स्थिरचरवल्लभ स त्वं जय भो ॥८॥
जययमलार्जुनभंजनमूर्ते जय गोपीकुचकुंकुमांकितांग ।
पांचालीपरिपालन जय भो जय गोपीजनरंजन जय भो ॥९॥
जय रासोत्सवरत लक्ष्मीश सततसुखार्णव जय कंजाक्ष ।
जय जननीकरपाशसुबद्ध हरणान्नवनीतस्य सुरेश ॥१०॥
बालक्रीडनपर जय भो त्वं मुनिवरवंदितपदपद्मेश ।
कालियफणिफणमर्दन जय भो
द्विजपत्न्यर्पितमत्सि विभोऽन्नम् ॥११॥
क्षीरांबुधिकृतनिलयन देव वरद महाबल जय जय कांत ।
दुर्जनमोहक बुद्धस्वरूप सज्जनबोधक कल्किस्वरूप ।
जय युगकृद्दुर्जनविध्वंसिन् जय जय जय भो जय विश्वात्मन् ॥१२॥
इति मंत्रं पठन्नेव कुर्यान्नीराजनं बुधः ।
घटिकाद्वयशिष्टायां स्नानं कुर्याद्यथाविधि ॥१३॥
॥ इति दामोदरस्तोत्रम् ॥